जय जगन्नाथ के नारों से गूंजा कोयलांचल, उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
राजपरिवार द्वारा छेरा पहरा, सांसद-कलेक्टर समेत कई दिग्गज हुए शामिल
सूरजपुर/बिश्रामपुर। कोयलांचल बिश्रामपुर में उत्कल समाज द्वारा आयोजित महाप्रभु श्री जगन्नाथ की 10वीं रथ यात्रा धूमधाम से निकाली गई। पूरे क्षेत्र में “जय जगन्नाथ” के गगनभेदी नारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। रथ यात्रा में इस बार विशेष आकर्षण बना राजपरिवार द्वारा छेरा पहरा अनुष्ठान और प्रशासनिक व राजनीतिक गणमान्य जनों की गरिमामयी उपस्थिति।
🛕 मंदिर से मौसी के घर तक रथ यात्रा का भव्य आयोजन
यह रथ यात्रा 27 जून शुक्रवार को जगन्नाथ मंदिर बिश्रामपुर से प्रारंभ होकर मेन मार्केट होते हुए सरस्वती मंदिर (मौसी के घर), आरटीआई कॉलोनी तक निकाली गई। रथ की सजावट से लेकर मंदिर के रंग-रोगन तक सभी तैयारियाँ उत्कल समाज के समर्पित सदस्यों ने मिलकर की थी।
👑 राजपरिवार द्वारा निभाई गई परंपरा – छेरा पहरा
जगन्नाथ रथ यात्रा की ऐतिहासिक परंपरा “छेरा पहरा” को इस बार राजपरिवार के वंशज श्री अखिलेश प्रताप सिंह द्वारा विधिवत रूप से निभाया गया। यह आयोजन सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रतीक बना।
राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तियों की रही प्रभावशाली उपस्थिति
इस भव्य यात्रा में जिले एवं संभाग के कई प्रमुख नेताओं और अधिकारियों की उपस्थिति ने आयोजन को विशेष बना दिया:
सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज, कैबिनेट मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े, प्रेमनगर विधायक भूलन सिंह मरावी, सोनहत विधायक श्रीमती रेणुका सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती चंद्रमणि पैंकरा, बिश्रामपुर क्षेत्र महाप्रबंधक डॉ. संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सुभाष गोयल, पूर्व जिला पंचायत सदस्य सत्यनारायण जायसवाल, कलेक्टर एस. जयवर्धन, पुलिस अधीक्षक प्रशांत कुमार ठाकुर
🤝 उत्कल समाज की सक्रिय भागीदारी
इस आयोजन में उत्कल समाज के पदाधिकारियों और सदस्यों का योगदान सराहनीय रहा। मुख्य रूप से सेनापति प्रधान, अशोक सवाई, सूरज सेट्टी, अलंकार नायक, विशाल स्वाइ, प्रभाकर स्वाइ, शीतिकांत स्वाइ, प्रदीप त्रिपाठी, सुरेशन स्वाइ।
सभी ने समर्पण भाव से रथ यात्रा को ऐतिहासिक बनाने में अपनी भूमिका निभाई।
📌 निष्कर्ष:
बिश्रामपुर की जगन्नाथ रथ यात्रा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक बनकर उभरी। जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की मौजूदगी ने इसे अभूतपूर्व श्रद्धा और अनुशासन का उत्सव बना दिया। श्रद्धालुओं की हजारों लाखों की भीड़ ने सिद्ध किया कि कोयलांचल की भूमि धार्मिक समरसता और परंपरा की जीवंत मिसाल है।