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सड़क पर बेसहारा गौमाताएं: जिम्मेदारी किसकी है? समाज की संवेदनहीनता पर उठे सवाल?

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सूरजपुर/छत्तीसगढ़। गौमाता, जिन्हें हम श्रद्धा से “मां” कहकर पुकारते हैं, आज सड़कों पर बेसहारा, घायल और उपेक्षित स्थिति में घूमती नजर आती हैं। विगत कुछ वर्षों में जिस प्रकार से गौवंश की अनदेखी हो रही है, वह न सिर्फ समाज के संवेदनहीन होते जाने का संकेत है, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और धार्मिक चिंता का विषय भी बन गया है।

🚨 सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त गौमाता – मानवता पर सवाल

हाल ही की एक घटना ने लोगों की आंखें नम कर दीं, जब एक तेज रफ्तार वाहन ने एक गौमाता को टक्कर मार दी और उसे बीच सड़क पर मरणासन्न अवस्था में छोड़ दिया। इस वीभत्स दृश्य ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम अब इतने स्वार्थी और संवेदनहीन हो चुके हैं कि जिन्हें कभी अपने परिवार का हिस्सा मानते थे, आज उन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं?

🐄 गौवंश: कभी पूज्य, अब उपेक्षित

एक समय था जब गौमाता को घर में सम्मान, सेवा और स्नेह मिलता था। ग्रामीण भारत की पहचान ही गायों की सेवा और पालन से होती थी। लेकिन अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि वे सड़कों पर खुलेआम घूमती हैं, कचरा खाती हैं, और अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार बनती हैं।

📉 धार्मिकता बनाम व्यवहार – आत्ममंथन की आवश्यकता

हम स्वयं को हिंदू धर्म का अनुयायी कहते हैं और गाय को देवता समान पूजते हैं, लेकिन क्या व्यवहार में भी ऐसा है? यदि नहीं, तो यह समय आत्मविश्लेषण और सामूहिक चेतना का है।

“जिसे मां कहते हैं, उसके साथ ऐसा व्यवहार कैसा धर्म?”

🚧 सरकार व समाज को मिलकर उठाना होगा कदम

अब केवल सामाजिक चिंता प्रकट करना पर्याप्त नहीं।

निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

नगरपालिकाओं द्वारा स्थायी गौशालाओं की व्यवस्था

सड़क किनारे निगरानी टीम और प्राथमिक चिकित्सा सुविधा

दुर्घटना करने वाले वाहनों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई

जनजागरूकता अभियान – “गौमाता हमारी ज़िम्मेदारी” के तहत

हर मोहल्ले/गांव में स्थानीय स्तर पर गौसेवा समिति की स्थापना

“आज हम जिस समाज में जी रहे हैं, वहां हिंदुत्व, गौसेवा और राष्ट्र के मूल संस्कारों को सुरक्षित रखना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुकी है। शिवसेना हमेशा से हिंदू एकता, गौमाता की सेवा और मंदिरों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रही है। मैं सभी युवाओं और राष्ट्रप्रेमियों से आह्वान करता हूं कि वे संगठन से जुड़कर धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा में सहभागी बनें। जो कार्य हम आज करेंगे, वही हमारी आने वाली पीढ़ियों की पहचान बनाएंगे। आइए, मिलकर एक सशक्त और सांस्कृतिक छत्तीसगढ़ का निर्माण करें।”

— प्रियांशु देवांगन जिला अध्यक्ष, शिवसेना सरगुजा (छत्तीसगढ़)

📌 निष्कर्ष:

गौमाता केवल एक पशु नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और प्रकृति के प्रतीक हैं। उन्हें यूं ही सड़कों पर बेसहारा छोड़ देना हमारी धार्मिक सोच, सामाजिक समझ और मानवीयता तीनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

यदि अब भी नहीं चेते, तो न हम धार्मिक रहेंगे, न इंसान कहलाने लायक।

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