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हाथियों के हमले में बुजुर्ग की दर्दनाक मौत: ग्रामीणों ने वन विभाग की लापरवाही पर उठाए सवाल?

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वन्यजीवों की बढ़ती हलचल से दहशत में हैं ग्रामीण, सुरक्षा इंतजाम नाकाफी

सूरजपुर। जिले के घुई वन परिक्षेत्र अंतर्गत परमेश्वरपुर के जंगल में एक दुखद घटना ने ग्रामीणों को झकझोर दिया है। 61 वर्षीय रामदेव भगना कोडाकू, जो कि जंगल में अकेले झोपड़ी बनाकर रह रहे थे, जंगली हाथियों के हमले में कुचलकर मौत के घाट उतार दिए गए। इस घटना ने वन विभाग की सुरक्षा व्यवस्था और निगरानी पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

गुरुवार सुबह, जब कुछ ग्रामीण फुटू और खुखड़ी बीनने जंगल गए, तो उन्होंने रामदेव का शव झोपड़ी से कुछ दूरी पर पड़ा देखा। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि इस हमले की घटना दो से तीन दिन पहले हुई थी। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया, “अगर वन विभाग समय पर मुनादी करता और हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखता, तो शायद रामदेव की जान बचाई जा सकती थी।”

संभावित कारण और घटनाक्रम

परमेश्वरपुर निवासी रामदेव लंबे समय से अपने परिवार से दूर जंगल में अकेले रह रहे थे। उनका परिवार गांव में रहता है। प्रतापपुर SDO फॉरेस्ट, आशुतोष भगत ने कहा, “रामदेव की अकेले रहने की आदत के कारण हमले की सूचना समय पर नहीं मिली।” हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग ने क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी की जानकारी देने में नाकाम रहने के चलते यह हादसा हुआ।

घुई वन परिक्षेत्र में 10 हाथियों का एक दल सक्रिय है, जिसमें पांच नर, तीन मादा और दो बच्चे शामिल हैं। यह दल पकनी, अंजनी, जजावल, परमेश्वरपुर, हरिहरपुर और देवरी गांवों में दहशत फैला रहा है।

फसलों को नुकसान और सुरक्षा उपाय

प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में भी चार हाथियों का दल फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है। ये हाथी सिंघरा, भरदा, गणेशपुर और दलदाली के आसपास देखे गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग की सुस्ती के कारण फसलें बर्बाद हो रही हैं। एक स्थानीय किसान ने बताया, “हमारे धान, गन्ना और मक्के की फसलें इन हाथियों ने बर्बाद कर दी हैं। मुनादी के बावजूद प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।”

वन विभाग ने प्रभावित परिवार को नियमानुसार मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि केवल मुआवजा पर्याप्त नहीं है। उन्होंने मांग की है कि हाथियों को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इसके अलावा, वन विभाग से अपील की गई है कि जंगल में अकेले रहने वालों की पहचान कर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर लाया जाए और हाथियों की निगरानी के लिए विशेष टीमें गठित की जाएं।

निष्कर्ष

रामदेव भगना की मौत ने न केवल उनके परिवार को दुखी किया है, बल्कि पूरे क्षेत्र में वन विभाग की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। ग्रामीणों की चिंताओं को गंभीरता से लेना और प्रभावी सुरक्षा उपाय लागू करना अति आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसे दुखद हादसे न हों। उभरती हुई स्थिति को देखते हुए वन विभाग को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और मानव-हस्तियों के बीच संघर्ष को कम किया जा सके।

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