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छत्तीसगढ़ में आदिवासी जमीन हड़पने का खुलासा, सरगुजा-बस्तर में 9 लाख हेक्टेयर पर कब्जा

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कारोबारियों और भूमाफियाओं का सरगुजा-बस्तर में आदिवासी जमीनों पर डाका – बीपीएस पोया की चेतावनी

भारत देश के सभी आदिवासी राज्यों में से छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा आदिवासियों की जमीन हड़पने का मामला सामने आया है

बस्तर-सरगुजा में 9 लाख आदिवासियों की जमीन पर कारोबारियों का कब्जा” ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में जमीन हड़पने के गंभीर मुद्दे को उजागर किया है। यह खबर संसद की जनजातीय मामलों की स्थायी समिति (Standing Committee on Tribal Affairs) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर आधारित है, जो वन अधिकार अधिनियम (2006) के कार्यान्वयन की समीक्षा करती है और जनजातीय मामला मंत्रालय के मार्गदर्शन में प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर और सरगुजा में 9 लाख 47 हज़ार 479 हेक्टेयर जमीन पर कारोबारियों ने कब्जा कर लिया है, जिसमें छत्तीसगढ़ के 5 लाख 34 हज़ार 68 हेक्टेयर शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 4 लाख 31 हज़ार हेक्टेयर जमीन के दावों को मंजूरी नहीं मिली, जिससे 9 लाख से अधिक आदिवासी परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है। रिपोर्ट में प्रशासनिक लापरवाही और कानून के उल्लंघन को भी प्रमुख कारण बताया गया है।

बीपीएस पोया का बयान और चिंता

सूरजपुर, सरगुजा के सोशल एक्टिविस्ट और पर्यावरण प्रेमी बीपीएस पोया ने इस खबर पर गहन चिंता जताई है। उन्होंने दैनिक भास्कर अन्य अखबार संसद की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “यह आंकड़ा केवल बर्फ का एक छोटा सा हिस्सा है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा-बस्तर जैसे अनुसूचित क्षेत्रों में भूमाफिया और कारोबारी पेट्रोल पम्प, ढाबा ,रिसोर्ट ,फार्म हाउस जैसे व्यावसायिक कार्यों के लिए कौड़ियों के दाम पर आदिवासी की जमीन लीज पर लिया जा रहा है जिसके लिए भू-नक्शों के जरिए बड़े पैमाने पर जमीन कब्जा कर रहे हैं और फर्जी रजिस्ट्री करा रहे हैं। यह मामला अति गंभीर है।” पोया ने सवाल उठाया कि आखिर क्यों प्रशासन के उच्च अधिकारी, सरकार के जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद, आदिवासी सलाहकार परिषद के सदस्य, जनजाति मंत्रालय, राज्यपाल और राष्ट्रपति इस पर संज्ञान नहीं ले रहे हैं?

उन्होंने कहा, “हम किताबों और राष्ट्रीय पर्वों में सुनते हैं कि अंग्रेज आए और चले गए, लेकिन आज की स्थिति भी वही है। पूंजीपति और भूमाफिया गरीब, शोषित और पीड़ित आदिवासी समुदाय के अधिकारों और अस्तित्व को रौंद रहे हैं।” पोया ने दावा किया कि सोशल मीडिया और समाचारों के माध्यम से आए दिन ऐसी खबरें सामने आती हैं, लेकिन संसद की इस रिपोर्ट ने उन्हें शक पैदा किया है। उन्होंने कहा, “रिपोर्ट अधूरी लगती है। राज्य और केंद्र सरकार, जनजातीय मंत्रालय, आदिवासी आयोग, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, विपक्ष के प्रमुखों को मिलकर उच्च स्तरीय समिति बनानी चाहिए, जिसकी निगरानी में पूंजीपतियों के खिलाफ कार्रवाई हो और आदिवासियों की जमीन वापस दिलाई जाए।”

सरकार और प्रशासन पर सवाल

पोया ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए पूछा, “पूंजीपतियों और कारोबारियों को किसका सहारा मिल रहा है? कई मामलों में स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधि भी लिप्त हैं। ऐसे लोगों को बहिष्कार और अधिकारियों को निलंबित किया जाना चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार शीघ्र कार्रवाई नहीं करती, तो वे गूगल मीट के माध्यम से प्रदेश स्तरीय आदिवासी समुदाय के प्रमुखों के साथ चर्चा करेंगे और जल्द ही सरगुजा और बस्तर में आंदोलन शुरू करेंगे।

मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी

पोया ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, जो स्वयं आदिवासी समुदाय से हैं, उनसे विशेष अपील की। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री जी का यह नैतिक और संवैधानिक दायित्व है कि वे अपने विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए आदिवासियों की जमीन वापस दिलाएं। यदि वे यह निर्णय ले सकें, तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासियों को उनकी प्रकृति, जल, जंगल, जमीन, संस्कृति और सभ्यता के साथ स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार संविधान और मानवाधिकार देता है, जिसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

मांग और अपील

बीपीएस पोया ने सरकार से मांग की कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जाए, जिसमें पारदर्शिता हो। उन्होंने जोर दिया कि पूंजीपतियों और लिप्त अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, ताकि आदिवासी समुदाय को उनका हक मिल सके और उनकी आजीविका सुरक्षित हो। यह मामला न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समुदाय के लिए एक सबक है, और इसकी गूंज सरकार और प्रशासन तक पहुँचनी चाहिए।

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