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शासकीय महाविद्यालय सिलफिली में हरिशंकर परसाई स्मरण कार्यक्रम संपन्न

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सूरजपुर। शासकीय महाविद्यालय सिलफिली में व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई की जयंती के अवसर पर हरिशंकर परसाई स्मरण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम महाविद्यालय के प्राचार्य श्री अमित सिंह बनाफर की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आरंभ प्राचार्य तथा महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा संस्कृति की देवी माँ सरस्वती के छायाचित्र पर दीप और धूप प्रज्वलन से हुआ। सर्वप्रथम महाविद्यालय की छात्रा अलामिका ने हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन तथा साहित्यिक परिचय प्रस्तुत किया। बी ए तृतीय सेमेस्टर की छात्राओं मीनाक्षी तथा संजना ने परसाई के व्यंग्य ‘बेईमानी की परत का पाठ कर विद्यार्थियों को देश में जड़ जमाए बेकारी तथा मरीची की समस्या तथा शासन-प्रशासन की बेरोजगारों के प्रति उदासीनता के भाव से अवगत कराया। कार्यक्रम के दौरान हरिशंकर परसाई के निबंध ‘मोलाराम का जीव का शैक्षिक वीडियो यूट्यूब के माध्यम से प्रोजेक्टर द्वारा प्रस्तुत किया गया। बी ए अंतिम वर्ष की छात्रा जैतून निशा ने मुनाफाखोरों की चालाकी से संबंधित परसाई के व्यंग्य ‘उखड़े खंभे’ का पाठ किया।

महाविद्यालय के प्राचार्य श्री अमित सिंह बनाफर ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि परसाई की समाज के लिए चिंता हमें यह संदेश देती है कि हमें समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझना चाहिए। हमें अपने स्वत्व से ऊपर उठकर समाज और देश के लिए भी योगदान देना चाहिए जब हम समाज के विषय में सोचना शुरु करेंगे तभी हमें उसमें मौजूद विभिज्ज बुराइयों से साक्षात्कार होगा और हम उनके विरुद्ध आवाज उठा सकेंगे।

महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ अजय कुमार तिवारी ने बताया कि परसाई कबीर के एक प्रिय दोहे ‘सुखिया सब संसार है स्वावे और सोवे। दुखिया दास कबीर है जागे और सेवे’ को अवसर गुजमुजाते थे। वे समाज के सच्चे पहरेदार थे । परसाई का जागरण समाज की भलाई के लिए था। परसाई ने समाज के सुनहरे पक्ष के पीछे लिपी कुरूपता को अपने व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। हरिशंकर परसाई का व्यक्तित्व कबीर की तरह था। उन्होंने ‘कागद की लेखी’ पर नहीं बल्कि ‘आँखन देखी पर विश्वास किया। उन्होंने समाज के मध्य तथा निम्न वर्ग के बीच रहकर सामान्य लोगों, मजदूर, किसान, रिक्शा वाले, ठेला चलाने वाले, कुलीगिरी करने वाले से उनके मन की बातें जानकर समाज के वास्तविक रूप को पहचाना। उन्होंने समाज की वास्तविक बुराइयों और देशव्यापी भ्रष्टाचार को अपने व्यंग्यों का आधार बनाया। परसाई ने भेड़ें और भेड़िए व्यंग्य के माध्यम से कथित प्रजातन्त्र की पोल खोली है। परसाई बताते हैं कि किस प्रकार प्रचार तंत्र किसी भी सरकार को बनाने अथवा गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है? ‘भोलाराम का जीव निबंध में सरकारी कार्यालयों के भ्रष्टाचार को प्रस्तुत करते हैं। ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ व्यंग्य में वे बताते हैं कि भ्रष्ट पुलिस तंत्र जिसे चांद की पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए चांद पर भेजा जाता है। वह वहां की व्यवस्था को भी भ्रष्ट कर देता है। भ्रष्टाचार से त्रस्त वांद का प्रशासन अंततः उसे वापस पृथ्वी पर भेज देता है। हरिशंकर परसाई आचरण और जीवन मूल्य को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हैं। इस देश में मानव मूल्यों के पतन का कारण व्यक्ति के लालच और शासन की गलत नीतियों को मानते हैं।

कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक श्री आशीष कौशिक ने सभी को धन्यवाद देकर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। कार्यक्रम के दौरान सहायक प्राध्यापक डॉ प्रेमलता एक्का, श्रीमती अंजना, श्रीमती शालिनी शांता कुजूर, श्री भारत लाल कंवर, श्री जफीर तथा कार्यालयीन कर्मवारी के साथ बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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