अंबिकापुर। जब पैसा और रसूख दोनों आपके पास हो तो फिर किसी से क्या डरना ऐसा ही कुछ मामला इन दिनों स्वास्थ्य मंत्री जी के संभागीय क्षेत्र में चल रहा है सरगुजा के अंबिकापुर में संचालित दया निधि अस्पताल के डॉक्टर और जिले के नर्सिंग होम एक्ट के नोडल अधिकारी डॉ संदीप त्रिपाठी ने प्रभाव और दबाव लगाकर प्रशासन द्वारा गठित की गई जांच टीम में ही बदलाव करा दिया ऐसा आरोप लग रहा है।
अब इस जांच दल में वे ही अस्पताल की जांच करेंगे जो उनके साथ आरोपों में भी सम्मिलित है या यह भी कह सकते हैं कि मित्र मंडली को ही जांच का जिम्मा सौंपा गया है।
मिली जानकारी के अनुसार दया निधि अस्पताल पर आरोप लगे हैं कि अस्पताल में खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, और कई घोटाले भी किए गए है।
मीडिया में खबरें उठने के बाद जांच टीम तो गठित की गई लेकिन डॉक्टर साहब का रसूख इतना है कि उन्होंने जांच टीम को ही बदल दिया इस टीम से जानकार लोगों को बाहर कर दिया गया है पूर्व गठित की गई जांच कमेटी से दो लोगों को बाहर किया गया है और जांच शुरू होने से पहले ही जांच की रिपोर्ट का अनुमान लगने लगा है। पूर्व गठित टिम से एक अधिकारी को हटाकर के ऐसे डॉक्टर को रखा गया है जिनके ऊपर डॉ संदीप त्रिपाठी के साथ मिलकर पैसा मांगने का आरोप है वहीं एक अधिकारी को पूरी तरह से जांच टी से बाहर कर दिया गया है अब इस जांच टीम में सात सदस्यों की जगह 6 अधिकारी ही जांच करेंगे ऐसे में देखना होगा की जांच कितनी निष्पक्ष होगी ?
इस मामले की शिकायत हुई और जांच टीम भी गठित हुई
ऐसा लगा मानो प्रशासन इस बार सख्ती दिखायेगा ही मगर डॉक्टर साहब का जुगाड़ ऐसा की जांच टीम बनने के बाद जांच करने वाले ही बदल दिए गए, जानकारों को जांच दल से बाहर कर डॉक्टर साहब के करीबियों को स्थान दे दिया गया, अजी सवाल अपनो का है न क्योंकि जांच दल गठित करने वाले सरकारी डॉक्टर है और जांच जिनके खिलाफ होनी है वो भी सरकारी डॉक्टर वह भी एक साथ में काम करने वाले है,। ऐसे में सवाल यही है कि जब भला जांच टीम बदल दी गई तो जांच कितनी निष्पक्ष होगी ?
सरकारी तंत्र को ठीक करने मंत्री जी हर संभव प्रयाश कर रहे है मगर जरूरत है जिला स्तर के अधिकारियों को जागने की ताकि सरकारी अस्पताल में जाने वाला गरीब मरीज जिला अस्पताल में ही बेहतर उपचार करा सके न कि डॉक्टर अपने निजी अस्पताल को संनचालित करने मरीजों को अपना शिकार बनाते रहे।