जनता ने उठाए सवाल – समान दोष, समान सजा क्यों नहीं?
सूरजपुर/भैयाथान: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और 15वें वित्त आयोग की योजनाओं में लाखों रुपये के गबन का मामला उजागर हुआ है। जनपद पंचायत भैयाथान क्षेत्र के ग्राम पंचायत सलका में हुए इस घोटाले का खुलासा आरटीआई (सूचना के अधिकार) के माध्यम से प्राप्त दस्तावेजों से हुआ है।
अब तक की कार्रवाई केवल पंचायत स्तर पर – सरपंच, सचिव और रोजगार सहायकों तक सीमित रही है। जबकि दस्तावेज़ और फील्ड निरीक्षण रिपोर्ट बताते हैं कि इस प्रक्रिया में जनपद एवं जिला स्तर के अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
क्या है मामला?
शिकायत के बाद हुई जांच में यह सामने आया कि कुछ निर्माण कार्य केवल कागज़ों पर पूरे किए गए थे। फील्ड में उन कार्यों के *भौतिक प्रमाण नहीं* मिले, बावजूद इसके भुगतान की अनुशंसा कर दी गई थी। आरटीआई से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ मामलों में *कूप निर्माण के फोटोग्राफ और जिओ टैग फोटो मेल नहीं खाते*, फिर भी संबंधित अधिकारियों ने कार्य पूर्णता प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर किए।
❓ महत्वपूर्ण सवाल जो उठ रहे हैं
जब कार्य स्थल पर नहीं था, तो उसका मूल्यांकन कैसे किया गया?
बिना स्थल निरीक्षण के भुगतान की अनुशंसा क्यों हुई?
कार्यक्रम अधिकारी, जनपद सीईओ, जिला अधिकारी – जिनके दस्तखत फाइलों पर हैं, क्या उनकी जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए?
⚖️ नीचे के कर्मचारियों पर कार्रवाई, ऊपर पर चुप्पी क्यों?
ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल पंचायत स्तर के कर्मचारियों पर कार्रवाई कर देना न्यायसंगत नहीं है। उनका आरोप है कि अधिकारियों को प्रशासनिक संरक्षण मिल रहा है, जिससे उन पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं हो रही।
📢 जनता की मांग: पारदर्शी जांच और समान कार्रवाई
ग्रामीण अब एक स्वर में मांग कर रहे हैं कि –
अगर पंचायत स्तर पर कार्रवाई हो सकती है, तो जनपद और जिला स्तर पर क्यों नहीं?
वे चाहते हैं कि दोषी चाहे जिस भी स्तर का हो, उसके विरुद्ध समान रूप से कार्रवाई हो।
🗣️ जवाब में क्या बोले जिला पंचायत CEO:
इस संबंध में पूछे जाने पर जिला पंचायत सीईओ कमलेश नंदिनी साहू ने बताया:
“यह मामला मेरे कार्यकाल से पूर्व का है। संबंधित फाइलें मंगाई गई हैं, उनका परीक्षण कर उचित कार्रवाई की जाएगी।”
निष्कर्ष:
यह मामला न केवल एक घोटाले का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक जवाबदेही किस स्तर तक सीमित रह गई है। यदि दोषियों को संरक्षण मिलता रहा, तो यह शासन की योजनाओं के साथ बड़ा अन्याय होगा।